सात्विक गुण,

प्रकृति के तीन गुणों में एक है। यह गुण हल्का या लघु और प्रकाश करने वाला है। प्रकृति से पुरुष का संबंध इसी गुण से होता है। बुद्धिगत सत्य में पुरुष अपना बिम्ब देखकर अपने को कर्ता मानने लगता है। सत्वगत मलिनता आदि का अपने में आरोप करने लगता है। सत्व की मलिनता या शुद्धता के अनुसार व्यक्ति की बुद्धि मलिन या शुद्ध होती है।

अत: योग और सांख्य दर्शनों में सत्व शुद्धि पर जोर दिया गया है। जिन वस्तुओं से बुद्धि निर्मल होती है उन्हें सात्विक कहते हैं– आहार, व्यवहार, विचार आदि पवित्र हों तो सत्व गुण की अभिवृद्धि होती है जिससे बुद्धि निर्मल होती है। अत्यंत निर्मल बुद्धि में पड़े प्रतिबिंब से पुरुष को अपने असली केवल, निरंजन रूप का ज्ञान हो जाता है और वह मुक्त हो जाता है।…

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