तो क्या ये निर्धन और पिछड़े देशों में गिने जाएंगे ??
नहीं ना??*
तुलना क्यों??
क्या प्रश्न पूछने वाले स्वयं को एक चायनीज नागरिक की तुलना में समकक्ष पाते हैं…
क्या वो एक चायनीज नागरिक जितना श्रम करने में सक्षम हैं ??
क्या चाइना जैसी सरकार को सहन करने का धैर्य यहाँ की जनता में है??
क्या मानवाधिकारों का उस सीमा तक उल्लंघन यहाँ की जनता झेल सकती है??
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अपनी जाति का ग्राम प्रधान ना बने तो बवाल मचाने लोग तुलना करते हैं चाइना से…
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चाइना में कोई आरक्षण नहीं है…
छोड़ सकते हो आरक्षण ??
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चाइना में लोग सरकारी नौकरी तो छोड़ो किसी भी प्रकार की नौकरी के पीछे नहीं भागते…
अपने निजी उद्यम को प्राथमिकता देते हैं..
हर दस में से तीन चायनीज स्वयं का कुछ करते हैं …
यहाँ बी-टेक करके बैंक PO का एग्जाम देते हैं या चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन करते हैं…
भारत की 90% जनता को बिना काम की आराम वाली पक्की सरकारी नौकरी चाहिए सबको…
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चाइना में सरकार की इच्छा के विरूद्ध पत्ता तक नहीं हिल सकता…
सरकार की किसी नीति की आप आलोचना नहीं कर सकते…
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सरकारी गलती के कारण चाहे लाखों लोग मर जाएँ
पर आप चूँ नहीं कर सकते…
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सरकार के विरूद्ध मोर्चा निकालने पर आपको टैंक से कुचल दिया जाए और बाकी लोग सहम कर चुपचाप समझौता कर लें..
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चाइना में हर कमाने वाले से सरकार इनकम टैक्स वसूलती है… *
यहाँ कितने देते हैं एक विशेष कोम के लोग तो टैक्स बिल्कुल नहीं देंगे 80% जनता फ्री बिजली पानी राशन??और गुंडागर्दी अलग
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आपकी अपने आप में कोई भी विचारधारा हो
परंतु
वोट आपको केवल वर्तमान सरकार को ही देना होगा…
और हर नागरिक को सरकार वाली पार्टी का मेंबर होना आवश्यक हो…
चुनाव हों पर दोनों
एक ही पार्टी बीजेपी के हों…
चलेगा??
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सरकार जो भी क़ानून लाये आपको बिना विरोध
सिर झुकाये उसे मानना ही होगा…
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सरकार का विरोध करते ही आप अचानक गायब हो जाएँ और आपका परिवार सरकार से पुनः तक ना पूछ सके…
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बकलोली करना बहुत आसान है...
तुलना करना भी..
पर उस लक्ष्य के लिए बलि किसी को नहीं देनी ना किसी को कष्ट झेलना है…
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मैं ये नहीं कह रहा कि हम वो सब झेलें जो एक आम चायनीज झेलता है…
हम एक ऐसे देश में हैं जहाँ हर एक को समान अधिकार हैं… सरकार की नीतियों की आलोचना की आज़ादी है…
सरकारी नीतियों को कोसने की स्वतंत्रता है…
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चाइना में भी दस बारह शहरों को छोड़ दो तो हालात भारत से अच्छे नहीं हैं..
निर्धनता वहाँ भी बहुत है…
पशुओं जैसा जीवन जीने पर करोड़ों लोग विवश हैं वहाँ भी...
भारत के अति निर्धनों से भी निकृष्ट है…
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किसी से तुलना क्यों करनी है…
हम अपने आप में यूनिक क्यों नहीं हो सकते??
हमारे विकास के पैमाने अलग क्यों नहीं हो
सकते??*
- क्यों हमें दूसरों जैसा ही बनना है??
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हजार वर्ष की गुलामी हमारे मन मस्तिष्क से आजतक गई नहीं है...
जब तक कोई गोरा हमें नहीं बताता कि हमने भारत से ये सीखा है..
*तब तक हमें अपनी महान संस्कृति की उपलब्धियों का पता ही नहीं होता…
हमें अपनी उपलब्धि पर प्रसन्न होने के लिए दूसरों के सर्टिफिकेट की आवश्यकता पड़ती है…
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अंग्रेजी का एक शब्द भले समझ ना आये पर विदेशी बैंड का आयोजन हो तो लाखों रूपये उड़ाने से हमें परहेज़ नहीं…
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कुल जमा सत्यता ये है हम हीन भावना से ग्रसित लोग हैं तभी मोदी जैसे महानायक की भी कुछ दिमागी दिवालिया जी भर कर आलोचना करते है।जबकि पाक सहित दुनिया के लोग कहते है हमको मोदी चाहिए।इसीलिए हमारा अधिकांश समय तुलनाओं में व्यर्थ जाता है. यह जानकारी आज बाबूजी सुशील कुमार सरावगी जिंदल राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय विचार मंच नई दिल्ली ने दी। राहुल गोयल राष्ट्रीय महामंत्री द्वारा विज्ञप्ति जारी कर दी।.