कुछ-कुछ नयी बातें:

अक्सर मुस्लिम और वामपंथी दुष्प्रचार करते हैं कि ब्रह्मा ने सरस्वती से शादी की थी। जब आप उनसे पूछोगे यह किस किताब में लिखा है तब वह कहेंगे सरस्वती पुराण में लिखा है। उसके बाद जब आप उनके सामने 18 पुराणों के नाम बता देंगे और फिर पूछेंगे इन 18 पुराणों में कोई सरस्वती पुराण तो है ही नहीं। फिर वह गूगल पर सर्च करेगा और कहेगा वामपंथी इतिहासकार डीएन झा की किताब में लिखा है ।

यह डीएन झा, रोमिला थापर इरफान हबीब, भारत के ये सभी इतिहासकार एक ऐसी संस्था की उपज है जो संस्था मार्कसिस्ट हिस्टोग्राफी कहलाती है।

चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन में वामपंथी नेताओं ने एक प्लानिंग बनायी कि भारत जैसे देश पर वामपंथ का शासन कैसे हो सकता है क्योंकि भारत के युवा वामपंथियों के जाल में इतनी आसानी से नहीं फंसने वाले है। तब एक क्यूबा का वामपंथी ने कहा कि हमें 10 साल या 20 साल की प्लानिंग नहीं करनी होगी हमें सबसे पहले जिस भी देश पर कब्जा करना है उस देश के इतिहास को विकृत करना पड़ेगा उस देश के शिक्षा संस्थानों में घुसना पड़ेगा फिर उन शिक्षा संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों में हम उनकी मूल संस्कृति मूल धर्म के प्रति ऐसा जहर बोयेंगे कि वह धीरे-धीरे वामपंथी विचारधारा का हो जाएगा। इसके लिए हमें कम से कम 50 से 70 साल की प्लानिंग लेकर चलनी होगी। हमारा कुछ काम पुरा तो अंग्रेज भी कर चुके है।

उसके बाद जब भारत को आजादी मिली तब वामपंथी दलों ने नेहरू से एक समझौता किया कि आप देश चलाइए। हम आपको देश चलाने में कोई डिस्टर्ब नहीं करेंगे और हमें आप देश के शिक्षा संस्थान और शिक्षा मंत्रालय दे दीजिए। हमें इतिहास लिखने का काम दे दीजिए और हमारी पसंद का शिक्षा मंत्री नियुक्त करते रहिए ।

फिर देश की आजादी के बाद भारत का जो पहला शिक्षा मंत्री बना उसके पास कोई डिग्री नहीं थी बल्कि उसके पास मुफ्ती की डिग्री थी। वह मक्का में पैदा हुआ था। 30 साल से मक्का की मस्जिद में तकरीरें देता था। ऐसे व्यक्ति यानी “मौलाना अबुल कलाम आजाद” को देश का पहला शिक्षा मंत्री बनाया गया जो कट्टरपंथी हनफी की विचारधारा का मुस्लिम था ।

उसके बाद वामपंथियों ने भारतीय इतिहास प्रतिष्ठान से लेकर JNU दिल्ली यूनिवर्सिटी तक तमाम जगहों पर कब्जा किया और अपनी विचारधारा के इतिहासकारों से इतिहास की किताबें लिखवाई और यह सारी किताबें झूठ का पुलिंदा साबित हुई।

नेहरू के बाद इंदिरा गांधी ने भी इस परंपरा को जारी रखा। इंदिरा गांधी ने भी वामपंथियों को खुली छूट दे दी कि वह इतिहास को विकृत करते रहें। अपने मनपसंद शिक्षा संस्थानों में जो चाहे वह करते रहें बस उन्हें सत्ता में कभी डिस्टर्ब ना करें।

इसीलिए वामपंथियों ने इंदिरा गांधी के खिलाफ कभी कोई आवाज नहीं उठाई बल्कि इन वामपंथियों ने आपातकाल का समर्थन किया था। एक भी वामपंथी नेता आपातकाल के समय जेल नहीं गया था।

मार्क्सवादी इतिहास के इतिहासकारों में से सबसे बड़े इतिहासकार प्रोफेसर डीएन झा की गवाही राम मंदिर केस में हुई थी । उन्होंने बयान दिया था कि राम कभी हुए ही नहीं थे, मुस्लिम पक्ष ने प्रोफेसर डीएन झा को अपनी और से अदालत में पेश किया था। डीएन झा ने अदालत में कहा कि उन्होंने जो शोध किया है, उसके अनुसार भगवान राम अयोध्या में कभी थे ही नहीं। भगवान राम एक काल्पनिक पात्र है। उन्होंने बड़े ही गर्व से यह भी दावा किया कि उनके ही शोध के आधार पर केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने रामसेतु तोड़ने का आदेश दिया था और सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया था कि भगवान राम काल्पनिक है वह मेरी ही शोध थी।

हिंदू पक्ष के वकील ने कोर्ट में डीएन झा का एक सेमिनार में दिया गया वीडियो चलाया, जिसमें वह भगवान राम को शराबी और मांसाहारी बता रहे थे। उसके बाद जज ने उनसे सवाल किया कि आप एक व्यक्ति को काल्पनिक बताते हैं। फिर दूसरे सेमिनार में उसी व्यक्ति को शराबी और मांसाहारी बताते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि जो व्यक्ति काल्पनिक है, तो आपने यह कैसे शोध कर लिया कि वह शराबी और मांसाहारी भी है ?
उसके बाद डीएन झा की बोलती बंद हो गई और उनकी गवाही को और उनके रिसर्च को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

भारत के इन वामपंथी इतिहासकारों ने जो गंदगी फैलाई है उसे मिटाने में कई सदीयां लगेगी । अभी रक्षाबंधन के दिन तमाम अखबारों में प्रोफेसर इरफान हबीब ने एक लेख लिखा कि रक्षाबंधन के दिन अकबर से लेकर जहांगीर के दरबार में लाखों महिलाएं आती थी और मुगल बादशाह सबसे राखी बंधवाते थे।
जबकि सच्चाई यह है कि अकबर ने अपनी सगी फुफेरी बहन जो बैरम खान की पत्नी थी और जब अकबर छोटा था तब से बैरम खां और बैरम खान की पत्नी “सलीमा सुल्ताना बेगम” अकबर की संरक्षक थी फिर अकबर ने अपने ही बहनोई बैरम खां का कत्ल करवा कर अपनी सगी फुफेरी बहन से निकाह कर लिया।

अब ऐसे दरिंदे मुगलों की दरिंदगी पुर्ण आचरण को छुपाकर किस तरह से ये इतिहासकार इनकी शानदार छवि बनाने की कोशिश करते हैं सोचिए।

औरंगजेब का, वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब, रामचंद्र गुहा और रोमिला थापर ने बेहद शानदार महिमामंडन किया है उसे आलमगीर की उपाधि तक दी है। उसके बारे में यह लिखा है कि यह इतना नेक था कि अपने खर्चे के लिए वह सरकारी खजाने से पैसा नहीं लेता था बल्कि टोपिया सील कर फिर उन्हें बेचकर जो पैसा मिलता था उससे वह अपना निजी खर्च चलाता था। शायद इरफान हबीब खुद औरंगजेब के लिए सुई धागा और कपड़े लाकर देते होंगे, लेकिन असली सच्चाई इन दोगले इतिहासकारों ने हमसे छुपाई है।

औरंगजेब का आदेश था कि जोधपुर (मारवाड़) के मंदिरों से गाड़ियों मे भरकर लाई गई मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबाया जाएं और दीन ईमान के मजहब वाले उन सिढियों से मस्जिद में जाकर इबादत करेंगे जो अल्लाह की नजरों में पाक होगा। (पता नही किसके ईमान से खेल रहे हैं ये नीच क़ौम वाले)
ये वो सत्य है जिसे सेकुलरिज्म की आड़ में छुपाया जाता है।

“औरंगजेब के आदेश की वह काॅपी आज भी जोधपुर राजभवन में सुरक्षित रखी गई है।”

फातिमा शेख की काल्पनिक कहानी का सबसे बड़ा सबूत यही है की फातिमा शेख के कोई वंशज, कोई रिश्तेदार, कोई गांव वाले, कोई सहकर्मी, कभी सामने नहीं आया ।
कभी कोई सबूत नहीं मिला ।

ऐसे ही वामपंथियों ने बड़े शानदार तरीके से आतताई दरिंदों को महान बनाने के लिए कोई न कोई फेक नॉरेटिव पेश कर दिया करते थे।

और रोमिला थापर से जब पूछा गया था कि आपने जो लिखा है कि औरंगजेब हिंदू मंदिरों को दान देता था, हिंदू मंदिरों के निर्माण के लिए पैसा देता था, तो इसका सोर्स क्या है? तब रोमिला थापर ने कहा था कि इतिहास हमेशा बैलेंस्ड होना चाहिए अगर आप किसी एक पक्ष के बारे में अच्छी बात बता रहे हैं तो आपको दूसरे पक्ष के लोगों को भी अच्छा बताना पड़ेगा। ये था इनका अपना मतामत।

और इस तरह से इन नकली इतिहासकारों ने अकबर को महान बता दिया। औरंगजेब को महान बता दिया। दरिंदे टीपू सुल्तान को महान बता दिया। उसको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बता दिया, जबकि टीपू सुल्तान भारत की आजादी के लिए नहीं लड़ा था। वह अपने राज्य और अपनी तानाशाही बचाने के लिए लड़ा था और बगल के हिंदू राज्य त्रावणकोर पर हमला करके उसे भी मुस्लिम राज्य बनाना चाहता था। इसीलिए अंग्रेजों ने उसपर हमला किया था।

सावित्रीबाई फुले के विद्यालय के आरम्भ की दो छात्राएं – काशीबाई और मुक्ता साल्वे।

काशीबाई ब्राह्मण समाज से आती थी और मुक्ता साल्वे दलित समाज से आती थी।
बाद में मुक्ता साल्वे ने एक बहुचर्चित पत्र लिखा जिसे उस समय के अखबार में प्रमुखता से छापा गया था।
साथ की फ़ोटो सगुणाबाई और सावित्रीबाई फुले की है।

इसी सगुना बाई की तस्वीर को सबसे पहले उस समय के वामपंथी इतिहासकार दिलीप मंडल जी ने बैलेंस करने के लिए फातिमा शेख बताकर प्रचारित कर दिया था और धीरे-धीरे एक काल्पनिक किरदार फातिमा शेख को भी प्रचारित कर दिया गया, जबकि फातिमा शेख नामक कोई महिला समाज सुधारक, शिक्षाविद् थी ही नहीं।

वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर ने अपनी एक किताब में लिखा था की प्राचीन काल में ब्राह्मण गौ मांस खाते थे। वह एक व्याख्यान में लखनऊ आई थी और वहां लोगों ने उनसे इस बात का प्रमाण मांगा, तब उन्होंने बेहद निर्लज्जता से कहा कि वह सारी बातें मैंने मनगढ़ंत लिखी थी।

सोचिए इन वामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास के नाम पर हमें कितना झूठ और कितनी नीचता परोसी है।

अब दिलीप मंडल जी खुद स्वीकार कर रहे हैं कि जब वह वामपंथी थे तब उन्होंने कितना झूठ परोसा है।

काश दूसरे वामपंथी इतिहासकार भी अपनी ग़लतीयों को स्वीकार करते। यह जानकारी आज बाबूजी सुशील कुमार सरावगी जिंदल राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय विचार मंच नई दिल्ली ने राष्ट्रीय महामंत्री राहुल गोयल से गहन मंथन बैठक में बताई।13/1/2025

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