रिश्ता पति-पत्नी का हो पिता-पुत्र का या कोई भी और किसी एक को दूसरे की पसंद या विचारधारा में खुश होना ही पड़ेगा ……
तभी कोई रिश्ता हमेशा जीवंत और मधुर रहेगा क्योंकि सच यही है कि मित्र के अतिरिक्त कोई भी रिश्ता बराबरी का होता ही नहीं ……
किसी का अच्छा होना और मनोनुकूल होना दो अलग बातें हैं आवश्यक नहीं जो इंसान अच्छा है वो हमारे मनोनुकूल भी हो ……
यदि वह सत्य या नीतिगत आचरण की कसौटी पर सही है तो हमें ही अपने में परिवर्तन करके उसके जैसा बनना सिद्धांत: उचित होगा संबंधों में सुख का सार भी इसी में निहित है ……
रिश्तों के महत्व की अपनी श्रेणियां होती हैं हमें उनमें अतिक्रमण या स्वतंत्र अस्तित्व नहीं ढूंढना चाहिए नहीं तो हम परिवार या समाज में रहते हुए भी अपने को एकाकी ही पाएंगे ……
आज अपने प्रभु से जीवन में ईश्वर से मनोनुकूलता की अलौकिक प्रार्थना के साथ ……
li.शुभ-खरमास.il
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li.शुभरात्रि.il
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li.शुभ-कल्याण.il
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सुशील कुमार सरावगी
(राष्ट्रीय अध्यक्ष) डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी
राष्ट्रीय विचार मंच दिल्ली
