पिछले 30 40 वर्षों में हम देख रहे हैं, कि “जैसे जैसे लोगों के पास धन संपत्ति बढ़ती गई, भौतिक साधन बढ़ते गए, वैसे वैसे लोगों के जीवन में अच्छे गुण घटते गए, और दोष बढ़ते गए। जैसे कि बड़ों के प्रति आदर सम्मान, उनके अनुशासन में रहना, सभ्यता नम्रता सेवा परोपकार दान दया संगठन ईश्वर भक्ति आस्तिकता यज्ञ हवन करना प्राणियों की रक्षा करना इत्यादि, जो अच्छे-अच्छे गुण थे, वे कम होते गए।” “और काम क्रोध लोभ ईर्ष्या अभिमान असहिष्णुता स्वार्थ भोग की लालसा इत्यादि दोष बढ़ते गए।”
इन सब दोषों के बढ़ने और उत्तम गुणों के कम हो जाने से परिणाम यह हुआ, कि “लोगों में अब सहन शक्ति बहुत कम दिखाई देती है। छोटी-छोटी बात में लोग क्रोध कर लेते हैं। मन मुटाव कर लेते हैं। मिल जुलकर नहीं रहते। दूसरों की सेवा करना नहीं चाहते। स्वार्थ की मात्रा बहुत बढ़ गई है। इससे आपसी व्यवहार में बहुत सी कठिनाइयां उत्पन्न हो गई हैं।”
“जब भी लोगों में थोड़ा सा टकराव उत्पन्न होता है, तो आगे व्यवहार करना कठिन हो जाता है। दो चार बार छोटा-मोटा मतभेद होने पर लोग एक दूसरे से वैसे ही संबंध तोड़ देते हैं, जैसे कुछ तेज़ अग्नि से पकाने पर रोटी जल कर नष्ट हो जाती है।” “इससे सबका जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। प्रत्येक व्यक्ति भय और आशंका के वातावरण में जी रहा है। अनेक प्रकार की समस्याओं और तनाव से ग्रस्त है।”
“यह स्थिति अच्छी नहीं है। इस स्थिति से बाहर निकलना चाहिए, और जो हमारे पुरानी पीढ़ी वाले बड़े बुजुर्गों में अच्छे गुण थे, उनको फिर से धारण करना चाहिए। ईश्वर की उपासना यज्ञ वेदों का अध्ययन अच्छे लोगों का संग इत्यादि उत्तम आचरणों से अपने जीवन को शांतिमय बनाना चाहिए।”
“यदि आप ऐसा करेंगे, अर्थात अपने जीवन में उत्तम गुणों को धारण करेंगे, तो जो आपसी लड़ाई झगड़े क्रोध आदि दोष हैं, वे धीरे-धीरे कम होने लगेंगे, और आप के जीवन में फिर से पूर्ववत् अच्छी स्थिति आ जाएगी।” “अतः अपनी दिनचर्या चिंतन भाषा और व्यवहार आदि को ठीक करें, और ऊपर बताए उत्तम गुणों को अपने जीवन में धारण करें। तभी आपका जीवन सुखमय एवं सफल बनेगा, अन्यथा नहीं।”सुशील कुमार सरावगी जिंदल दिल्ली
पिछले 30 40 वर्षों में हम देख रहे हैं, कि “जैसे जैसे लोगों के पास धन संपत्ति बढ़ती गई, भौतिक साधन बढ़ते गए, वैसे वैसे लोगों के जीवन में अच्छे गुण घटते गए,
